हिस्वा ठेला बुग्याल उर्गम घाटी

 आप सभी पाठकों को नमस्कार काफी समय पहले अपना ये व्लाग बनाया था परन्तु किन्ही कारणों से शुरू नही कर पाया। आज पुनः कई सालों बाद इच्छा हुयी उत्तराखंड के जिस जगह में रह रहा हूँ उसके आस पास प्राकृतिक सौन्दर्यता की भरमार है। बस इसी सोच के साथ आप सब पाठकों के बीच इन्ही कहानियों के साथ आया करूँगा- आज से 1वर्ष पूर्व अपने गांव देवग्राम के युवाओं के साथ उर्गम घाटी के पास के बुग्याल हिस्वा ठेला की यात्रा की थी इसी यात्रा स्मरण को आपके साथ शेयर कर रहा हूँ 
जल्दी सुबह गाँव के सभी युवा तैयार हो कर अपने इस तीन दिवसीय यात्रा पर निकल चुके थे गाँव को पार करते ही कल्पेश्वर महादेव मंदिर और कल्पगंगा (हिरण्यवती) नदी के दाएं किनारे से चलते - चलते हुए जंगलों को पार करते हुए कल्पगंगा की कल-कल, और सुबह की चिड़ियों की चहचहाहट  की मधुर धुन के साथ हम लोग सुंदरवन पहुँच चुके थे। सुंदरवन में कल्पगंगा को लकड़ी के कच्चे पुल से पर करते हुए अब हम लोग घास के जंगल में पहुँच चुके थे । यहाँ पर पिछले कई वर्षों से एक साधु अपनी साधना में इस निर्जन वन में अपनी कुटिया में रहते है। सुंदरवन से आगे चढ़ाई शुरू हो जाती है, पगडंडी नुमा रास्ते के सहारे आगे बढ़ते 2 किमी घास के जंगल को पार करते हुए अब हम लोग रिंगाल के जंगलों में पहुँच चुके थे सब लोग अपने-अपने ग्रुप के साथ आगे बढ़ रहे थे, थकान मिटाने को सब लोग अपने ग्रुप के साथ बैठ कर कुछ देर आराम कर लेते। अब रिंगाल के जंगल में धूप नही थी पर रास्ता और भी खराब था झुरमुटों के अंदर से सब लोग आगे बढ़ते जा रहे थे। बस कही कही पर सुर्यदेव की किरणें इन झुरमुटों के बीच से दिख जाती, अब रिंगाल के जंगल कम होने लगे थे और बांज, खरशू, मोरु, थुनेर, देवदार के जंगल शुरू हो रहे थे, अब पगडंडी से नीचे बहती नदी भी ऊपर से 20 -25 मीटर गहरी दिखाई दे रही थी। रास्ता खतरनाक था। सभी साथी संभलकर आगे बढ़ रहे थे तभी सामने चट्टान का चटकीला रूप दिखाई दिया और नदी बड़े वेग से चट्टान के ऊपर से गुजरकर झरने का आकार लेती बह रही थी, सब साथी इस झरने को निहार रहे थे बडा ही सुंदर अलौकिक दृश्य वहाँ पर बन रहा था। तभी ग्रुप के किसी साथी ने बताया इसी झरने के दूसरी तरफ जो गुफानुमा आकृति दिख रही है। इस स्थान पर भुवनेश्वर महादेब जी का स्थान है , परन्तु वहाँ पहुँचने का स्थान नदी के दूसरे छोर से जाता है। परन्तु खतरनाक और फिसलन भरी गुफा तक हर कोई आसानी से नही पहुँच पाता। केदारखंड में अध्याय 55 में भुवनेश्वर महादेव जी का वर्णन किया गया है-
# तद्धों गिरिकनये वे नदी हैरण्यमती मता। तस्या वे दक्षिणे तीरे भृंगीश्वर इतिरित।।

आगे बढ़ते ही सामने एक बड़ा मैदान नजर आया जिसके किनारे से नदी बह रही थी , अब सभी को बड़े जोर से भूख भी लग रही थी, अब सभी ने यहाँ पर बैठकर अपना घर से लाया हुआ नास्ता किया और काफी टाइम बैठ कर प्राकृतिक सौन्दर्य का लुफ्त लिया। कुछ देर आराम करने के बाद पुनः से हम सब ने आगे बढ़ना शुरू किया एक बार फिर हल्की -हल्की चढ़ाई शुरू हो चुकी थी, पर मंजिल तक पहुँचने की इच्छाशक्ति और प्राकृतिक सौन्दर्य का संगम कदमों को आगे बढ़ने के लिए लालायित कर रहे थे। बस जहाँ भी जिसे हल्की थकान का आभास होता थोड़ी देर खड़े - खड़े सुस्ता लेते और फिर आगे बढ़ जाते। कुछ देर और चलने के बाद , उबड़- खाबड पगडंडी, छोटे-छोटे नदी नालों को पार करते- करते फिर से एक मैदान दिखाई दिया, अब हम लोगों ने यहाँ पर नदी पर लगाई बल्लियों के सहारे नदी को पार किया और सामने ऊपर बड़े से टॉप पर अब हमारी मंजिल साफ नजर आ रही थी, लग रहा था मुश्किल से 15 मिनिट में हम लोग वहाँ तक पहुँच जाएंगे। मन को अब बहुत खुसी मिल रही थी। अब ग्लेशियर शुरू हो चुके थे जगह-जगह नदी पर गिरे ग्लेशियर पुल का काम कर रहे थे। जैसे ही नदी पर बनें ग्लेशियर को पार कर अब हम लोग 90 डिग्री के चढ़ाई के रास्ते पर थे परन्तु अब एक -एक कदम चलना मुश्किल हो रहा था, पेड़ बिल्कुल कम हो गए थे। बस बुराँस के पेड़ की प्रजाति की तरह बुग्यालों में उगने वाले सेमरू के जंगल जो कि झाड़ीनुमा आकर में उगती है बस हर तरफ वही दिखाई दे रहे थे। लगभग हमको इस चढ़ाई को पार करने में आधा घण्टे लग गए। अब हम हिस्वा ठेला बुग्याल में पहुँच चुके थे। चारों तरफ मखमली घास के बुग्याल, जगह-जगह पसरे हिम ग्लेशियर मन को आन्नदित के रहें थे हम लोग अपनी मंजिल पर पहुँच चुके थे, शाम ढल चुकी थी। अंधेरा होने से पहले की लालिमा सामने पर्वतों की चोटियों पर छा चुकी थी। हमारे ग्रुप के जो साथी पहले पहुँच चुके थे उन्होंने रात्री व्यवस्था के लिए टेन्ट लगा कर चाय की व्यवस्था कर चुके थे। थकान भरी यात्रा के बाद अब मन बहुत प्रफुलित था। अब धीरे -धीरे अंधेरा बहुत गहराने लगा था और चाँदनी रात में हिम आच्छादित चोटियां अपने धवल रूप में मन को शकून दे रही थी। सभी साथी मैदान में अलाव के चारों और बैठ कर हिस्वा ठेला बुग्याल का आंनद ले रहे थे। 

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