वर्ष 2006 की स्मृतियां मन में ताजी हो गयी, जब हम सभी साथी एक साथ काम करते थे तब सब ने मिलकर प्लान तैयार किया कि क्यों न इस वर्ष उर्गम घाटी से नन्दीकुंड, पाण्डवसेरा होते हुए मद्यमहेश्वर और पंचकेदार ट्रैकिंग की जाये। सभी साथियों ने हामी भरी तो तैयारियां भी शुरू हो गयी। इस यात्रा का प्रस्ताव जनदेश के सचिव श्री लक्ष्मण सिंह नेगी जी ने दिया, जो एक बहुत ही जागरूक स्वयंसेवी, धार्मिक और सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित हैं, और वर्तमान में भरकी भूम्याल देवता के पस्वा है। जिन महानुभाव ने सामान इकट्ठा करने में हम सबका सहयोग किया श्री रघुवीर चौहान जी वो अपने कुछ व्यकितगत कारणों से इस ट्रैकिंग को नही कर पाएक। Mobile price upto 10000 इस ट्रैकिंग को करने वालों में हमारे साथी श्री हरीश परमार जी, जो उसके बाद अपनी ग्राम पंचायत के ग्राम प्रधान और वर्तमान में व्लाक प्रमुख जोशीमठ हैं। दूसरे साथी श्री चन्द्रप्रकाश पँवार जी जिनको हम डॉक्टर साहब के नाम से भी बुलाते है और आज एक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे है, तीसरे साथी श्री बख्तावर सिंह रावत जी एक अच्छे समाजसेवी के रूप में आपकी पहचान है। और चौथे साथी एक गुरुदेव बसिष्ठ जी थे जो प्राथमिक विद्यालय भरकी में पढ़ाते थे। अब हममें से कभी किसी ने इस ट्रैक को पहले नही किया था तो गाइड के लिए देवग्राम गाँव के श्री मातवर सिंह चौहान को इस यात्रा के लिए गाइड के लिए साथ ले लिया था। मैं इस यात्रा में उम्र,अनुभव और तजुर्बों के आधार पर सबसे छोटा था, परन्तु आप लोगों के साथ तब से लेकर और आज तक आप लोगों के प्यार और स्नेह के कारण कभी ये अहसास ही नही हुआ।
यू तो ये मेरी इतनी लम्बी पहली पैदल यात्रा थी जो मेरे लिए बेहद ही अविस्मरणीय और रोमांचक थी। सुबह लगभग 10 बजे करीब सभी साथी तैयार हो कर अपने यात्रा पथ पर निकल चुके थे। ऋषि ओरबा की तपोभूमि देवग्राम का बांसा गाँव, जिनकें नाम पर ही इस घाटी का नाम उर्गम नाम से जाना जाता है, से होते हुए मुल्ला खर्क और बरजीक नाले की चढ़ाई को पार करते हुए आगे बढ़ चुके थे। बरजीक टॉप के बाद भोजपत्र के और सेमरू जो की बुराँस प्रजाति की झाड़ी शुरू हो चुकी थी , पार कर हम लोग बंशीनारायन मंदिर में पहुँच चुके थे पर बारिश बहुत जोरो की शुरू हो चुकी थी और हम लोग कुछ निराश भी की आगे कैसे बढेंगे और उच्च हिमालयी बुग्याल में इस सितम्बर के माह में बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है। और आगे की यात्रा और भी कठिन फिर मंदिर में दर्शन पूजन के पश्चात हम लोगो ने रात्रि विश्राम हेतु बंशीनारायन के समीप रिखडार उड़ियार जिसे गुफा कहा जाता में अपना ठिकाना बनाया। इस गुफा में उर्गम घाटी समेत पचंगे की नंदा स्वनूल जात यात्रा के लोग भी रात्रि विश्राम करते है। रात्रि को खाना पीना खाने के बाद समय व्यतीत और धार्मिक अर्चना के लिए हम लोगो ने जागर गायन शुरू कर दिया था, हममें से जागर वेता तो कोई नही था पर जनदेश द्वारा लिखित जागर पुस्तिका से जागर गायन किया जा रहा था। गुफा के बाहर बड़े जोरो की बारिश अभी भी हो रही थी। बस अब ऐसा लग रहा था यात्रा बीच में छोड़कर वापस जाना पड़ेगा। जागर गायन जारी था तभी श्री लक्ष्मण नेगी जी पर देवता अवतरित हो चुका था, एक बार को तो हममें से किसी को कुछ नही सूझ रहा था कि क्या करें, क्योकि उस समय वो भूम्याल देवता के अवतारी पुरुष नही थे। तभी हममें से किसी ने अगरबत्ती जला कर पूजन शुरू किया और देवता ने बचन दिया कि आप लोगों की आगे की यात्रा पूरी और निष्कंटक होगी। उसके बाद लगभग रात 11 बजे तक हम लोग भगवान को याद कर सो गये थे, अब आपके हाथ में है। परन्तु जोर की बारिश रुकने का नाम नही ले रही थी।
क्रमश अगले भाग में...........
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