रात देर तक जागने और पिछले दिन की यात्रा के कारण थके होने से आज नींद कुछ देर से खुली। मौसम साफ होने लगा था तो फिर से आज अगले पड़ाव तक जाने का प्लान बना तो, फटाफट सबने मिलकर नास्ता तैयार किया कुछ नास्ता दिन के लिए पैकिंग कर लिया गया। नास्ता करके आगे बढ़ने तक समय काफी निकल चुका था, और यही हम सबका प्लान भी था कि आज ज्यादा दूर तक नही चला जाय क्योंकि बारिश कही ज्यादा हुई तो हम लोग वापस आ सकते हैं। ज्यादा आगे बढ़ जाने से वापस आना भी खतरनाक होगा क्योंकि आगे जो नदियां हम लोगों को पार करनी थी , बारिश के कारण नदी का जल स्तर बढ़ने से पार कर पाना कठिन होता है।पर अब मौसम खुलना शुरू हो चुका था सुर्यदेव भी बादलों के बीच अटखेलियाँ खेल रहे थे। अब हम लोग मैंनवा खाल तक पहुँच चुके थे, आस पास नीचे गहरी घाटी दिखाई दे रहे थे। बस चारों तरफ मखमली घास का बुग्याल दिखायी दे रहे थे, जो कि बहुत मुलायम और नर्म थी। मैंनवा खाल में नंदा राजजात के दौरान उर्गम घाटी की और पंचगे की जात भी होती है। मैंनवा खाल के पास ही ब्रह्म कमल की सुंदर वाटिकाये है। जुलाई के बाद अनेक प्रकार के पुष्प यहाँ खिल जाते है। मैंनवा खाल के एक तरफ नीचे दो बहुत सुंदर तालाब है जिन्हें नंदी कुंड और स्वनूल कुंड के नाम से जाना जाता है।
यहाँ से अब हम बुग्याल के बीचों बीच सीधी पगडंडी को पकड़ कर आगे बढ़ रहे थे, कुछ ही देर में हमने गोदिला नही पर बने लकड़ी के पुल को पार कर यहाँ पर हल्का नास्ता किया। अब यहाँ से धौलडार तक हल्की चढ़ाई का रास्ता शुरू हो चुका था। धीरे- धीरे ही सही पर अब हम आज की मंजिल तक पहुँच चुके थे। यहाँ पर भी बहुत बड़ा मखमली बुग्याल है, परन्तु हमारे पास टेन्ट न होने के कारण हम लोगो ने मैदान के एक छोर पर बने प्राकृतिक उड़्यार (गुफा) जिसे धौलडार के नाम से जाना जाता है, आज के लिए अपना ठिकाना बना लिया था। और आस पास से ही लकड़ी, पानी की व्यस्था कर लिया।
(फोटो साभार# रघुवीर सिंह नेगी)
इसी मैदान के बीच में ही पालसियों (बकरी चरवाहों) का टेन्ट लगा था। अभी यही कोई शाम के 4.00 बज रहा था और बकरियों का झुण्ड मैदान के ऊपर ढलानों पर चुग रही थी, हम लोग यह सोचकर कि चलो थकान मिटाने के लिए पालसियों के टेन्ट पर जाकर चाय पी लिया जाए पर जब हम वहाँ पहुँचे टेन्ट के बाहर सिर्फ एक कुत्ता बैठा था । पालसी अपनी बकरियों के साथ थे। दूर से ही अपने टेन्ट के पास हम लोंगो को देखकर उनमें से एक कुछ ही देर में अपने टेन्ट में आ गए थे, अरे वो रिस्ते में मेरे मामा जी थे जो डुमक गाँव से थे । आज वो इस दुनियाँ में नही है। उनके आते ही हम सब लोगों ने वही पर चाय पी। अब हल्की बारिश शुरू हो चुकी थी। थोड़ी देर में मैदान में सब बकरियां आ गयी थी और वो दूसरे वाले पालसी भी। अब हमारे आज रात के खाने का इंतजाम भी उन्ही के साथ उनके टेन्ट में हो गया था। रात लगभग 9 बजे हम लोग खाना खा कर सोने के लिए वापस धौलडार गुफा में आ गए। हल्की बारिश अभी भी हो रही थी, परन्तु बुग्यालों में कब बारिश हो जाये इसका कोई पता नही रहता। आज के दिन का हम लोगों का पड़ाव छोटा था वो सिर्फ आगे के मौसम के अंदाजे के लिए की आगे की यात्रा में बारिश कितनी होने वाली है। अगली सुबह फिर से मौसम सुहावना हो चुका था हम लोग सुबह 5 बजे तैयार हो कर आगे के सफर के लिए निकल चुके थे। आज नास्ता नन्दीकुंड पहुँचने के बाद किया जाएगा। हाँ रास्ते की थकान और भूख मिटाने के लिए हमारे पास खाने पीने के लिए पर्याप्त संसाधन थे।
क्रमशः अगले भाग में................
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