समुद्रतल से लगभग 2,100 मीटर की ऊँचाई पर बसी हुई उर्गम घाटी की जनसंख्या लगभग 5000
है। इस घाटी में पाँच ग्राम पंचायतें है, जिसमें 15 उपगाँव हैं। देवग्राम के
बांसा गाँव में उर्वा ऋषि आश्रम है, जहाँ पर ऋषि और्वा ने तपस्या की थी उन्ही के
नाम पर इस घाटी का नाम उर्गम पड़ा। गढ़वाल का प्रारंभिक इतिहास कत्यूरी राजाओं का
है, जिन्होंने जोशीमठ से शासन किया और वहां से 11वीं सदी में अल्मोड़ा चले गये। गढ़वाल से उनके हटने से कई छोटे गढ़पतियों का उदय हुआ।
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उर्गम घाटी से लगभग 5 किमी दूरी पर पहाड़ की चोटी पर पल्ला गढ में आज भी
पत्थरों के खंडहर, किलेनुमा छोटे-छोटे घर, बड़े पत्थर पर बनायी गयी ओखलिया, ल्यारी
गाँव के पास मुख्य सड़क पर बना हुआ पंचधारा (पत्थरों से बनी हुई पाँच पानी की
धारा) और कल्पेश्वर मंदिर से 2 किमी ऊपर भरकी गाँव से पहले दोगड़ा गाँव में बूंगी
गढ़ बड़े-बड़े कटे हुए पत्थरों के अवशेष खंडहर कत्यूरी शासकों के इतिहास को ताजा करता
है।
देवग्राम के पास ही पंचकेदार के पाँचवे केदार श्री कल्पेश्वर महादेव जी का
प्रसिद्ध मंंदिर है। जो कि पाण्डवों द्वारा एक बड़े गुफा मे मन्दिर स्थापित किया गया है। कल्पेश्वर
मंदिर के पूर्व के पूर्व में कल्पगंगा के तट पर प्रसिद्ध भैरवनाथ जी का मंदिर भी
है। विस्तृत जानकारी के लिए पूर्व में कल्पेश्वर मंदिर पर लिखे गए लेख
का लिंक देखें।
देवग्राम गाँव के पूर्व में केदार मंदिर है, यहाँ पर शिवलिंग की आकृति केदारनाथ
मंदिर के शिवलिंग की तरह है। पूर्व में यहाँ पर एक जल कुण्ड हुआ करता था, और जो
परिवार बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा नही कर पाते थे, यही पर अपने पित्रों का
तर्पण करते थे। गाँव के बीच में ही अमृत कुण्ड का पवित्र कुण्ड व दुर्मा तोक मे
दुर्वासा ऋषि का आश्रम था, यही पर देवराज इन्द्र को श्राप मिला था। तब इन्द्र ने
भवँरे का रूप धारण कर देवग्राम के ऊपरी भाग में एक गुफा में तप किया था, गुफा आज
भी विद्यमान है। यहाँ पर रति कुण्ड में कामदेव को वापस पाने के लिए देवी रति ने
शिव जी की तपस्या की थी। इन सबका वर्णन केदारखण्ड में भी दिया गया है।
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लोक संस्कृति की धनी इस घाटी में वर्षभर किसी न किसी तरह के लोक मेले आयोजित होते
है, जिसमें प्रमुखतः जागर गायन व ढोल बादन के द्वारा देवरा मेले, मनो मेले, चौपता
मेला, नाग सिद्ववा, जीतू बगडवाल व पांडव नृत्य, नंदा जात मेला व नो दिवसीय शिव
गौरा विवाह मेले आयोजित होते हैं।
जैविक उत्पाद के लिए भी उर्गम घाटी काफी मशहूर है, जिसमें जैविक दालें राजमा,
चौलाई, सोयावीन, मंडुवा, शहद के साथ-साथ कई तरह की औषधीय जड़ी -बूटियाँ भी उत्पादन
होती है। यहाँ पहुँचकर पहाड़ी शुद्ध लजीज खाने का आनन्द लिया जा सकता है। अप्रैल
मई के बाद यहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है , वही अक्टूबर के बाद ठंड बढ़ने के
साथ-साथ दिसम्बर जनवरी में बर्फबारी भी शुरू हो जाती है।
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