उर्गम घाटी (urgam valley) धार्मिक व प्रकृति पर्यटन का अनूठा संगम


राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर ऋषिकेश से हेलंग 240 किमी (जोशीमठ से 13 किमी पहले) दूरी तय करने के बाद यहाँ पर बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़कर बायीं ओर मुड़ने के साथ ही अलकनंदा नदी बद्रीनाथ से निकलने वाली, कर्मनाशा नदी प्रणखंडेश्वरी गड़ी माता मंदिर के पश्चिम भाग से बहने वाली और उर्गम के कल्पेश्वर महादेव से निकलने वाली नदी कल्पगंगा जिन्हें हिरण्यावती के नाम से भी जाना जाता है, के संगम त्रिवैणी पर बने पुल को पार करते ही उर्गम घाटी की सुरम्य वादियों में पहुँच जाते है। हेलंग से उर्गम तक पहुँचने के लिए 14 किमी जीप या छोटी गाड़ियों से आसानी से पहुँचा जा सकता है। Realme mobile


रास्ते के जंगल जिसमें प्रमुखतः चीड़, बांज, बुराँस  के पेड़ों को पार करते ही ल्यांरी गाँव पहुँचने पर सामने उर्गम घाटी का बड़ा ही सुन्दर मनोरम दृश्य नजर आने लगता है। दूर-दूर तक फैले हुए गाँव, समतल घाटी और प्रकृति का हरितिमा ओढ़े हुए नजारा बड़ा ही खूबसूरत दिखता है। 

समुद्रतल से लगभग 2,100 मीटर की ऊँचाई पर बसी हुई उर्गम घाटी की जनसंख्या लगभग 5000 है। इस घाटी में पाँच ग्राम पंचायतें है, जिसमें 15 उपगाँव हैं। देवग्राम के बांसा गाँव में उर्वा ऋषि आश्रम है, जहाँ पर ऋषि और्वा ने तपस्या की थी उन्ही के नाम पर इस घाटी का नाम उर्गम पड़ा। गढ़वाल का प्रारंभिक इतिहास कत्यूरी राजाओं का है, जिन्होंने जोशीमठ से शासन किया और वहां से 11वीं सदी में अल्मोड़ा चले गये। गढ़वाल से उनके हटने से कई छोटे गढ़पतियों का उदय हुआ। Man tshirt combo pack उर्गम घाटी से लगभग 5 किमी दूरी पर पहाड़ की चोटी पर पल्ला गढ में आज भी पत्थरों के खंडहर, किलेनुमा छोटे-छोटे घर, बड़े पत्थर पर बनायी गयी ओखलिया, ल्यारी गाँव के पास मुख्य सड़क पर बना हुआ पंचधारा (पत्थरों से बनी हुई पाँच पानी की धारा) और कल्पेश्वर मंदिर से 2 किमी ऊपर भरकी गाँव से पहले दोगड़ा गाँव में बूंगी गढ़ बड़े-बड़े कटे हुए पत्थरों के अवशेष खंडहर कत्यूरी शासकों के इतिहास को ताजा करता है।


उर्गम घाटी प्रकृति पर्यटन के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन के लिए भी प्रसिद्ध है। पंचबद्री के ध्यानबद्री बद्री जी का मंदिर उर्गम गाँव में मुख्य सड़क से 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। मंदिर में भगवान विष्णु जी की मूर्ती, वाल कृष्ण जी  और गरुड़ जी स्थापित है। मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व बड़े उत्सव के साथ मनाया जाता है। मंदिर के दाहिने ओर शिव जी का मन्दिर भी बना हुआ है। उर्गम घाटी के हर दूसरे वर्ष होने वाले चौपता मेले में मंदिर से ही कृष्ण जी और गरुड़ जी मूर्ति मेले के आकर्षण का केंद्र होती है। यही पर 200 मीटर की दूरी पर भूमि क्षेत्रपाल श्री घंटाकर्ण जी का मंदिर भी है। यहाँ से 1 किमी की दूरी पर देवग्राम गाँव है।

देवग्राम के पास ही पंचकेदार के पाँचवे केदार श्री कल्पेश्वर महादेव जी का प्रसिद्ध मंंदिर है। जो कि पाण्डवों द्वारा एक बड़े गुफा मे मन्दिर स्थापित किया गया है। कल्पेश्वर मंदिर के पूर्व के पूर्व में कल्पगंगा के तट पर प्रसिद्ध भैरवनाथ जी का मंदिर भी है।  विस्तृत जानकारी के लिए पूर्व में कल्पेश्वर मंदिर पर लिखे गए लेख का लिंक देखें।


लोकमान्यताओ के अनुसार देवग्राम गाँव में देवी देवताओं के 360 से अधिक मंदिर थे। इसीलिये यहाँ का नाम देवग्राम पड़ा, परन्तु 1803 से पहले धौला से आयी आपदा के कारण सारे मंदिर मलबे में दब गये थे। बाद में खुदाई के दौरान मिले 100 से अधिक पत्थर की मूर्तियों को देवग्राम के गौरा मंदिर में रखे गये थे। परन्तु वर्ष 2013 की आपदा के बाद से अब कुछ ही मूर्तियाँ मंदिर में बचीं हुई है। मंदिर में आज भी एक बहुत बड़े विशालकाय पत्थर से बना हुआ शेर की मूर्ति भी विराजमान है। यही पर एक विशाल देवदार का हजारों वर्ष पुराना कल्पवृक्ष भी है।

 देवग्राम गाँव के पूर्व में केदार मंदिर है, यहाँ पर शिवलिंग की आकृति केदारनाथ मंदिर के शिवलिंग की तरह है। पूर्व में यहाँ पर एक जल कुण्ड हुआ करता था, और जो परिवार बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा नही कर पाते थे, यही पर अपने पित्रों का तर्पण करते थे। गाँव के बीच में ही अमृत कुण्ड का पवित्र कुण्ड व दुर्मा तोक मे दुर्वासा ऋषि का आश्रम था, यही पर देवराज इन्द्र को श्राप मिला था। तब इन्द्र ने भवँरे का रूप धारण कर देवग्राम के ऊपरी भाग में एक गुफा में तप किया था, गुफा आज भी विद्यमान है। यहाँ पर रति कुण्ड में कामदेव को वापस पाने के लिए देवी रति ने शिव जी की तपस्या की थी। इन सबका वर्णन केदारखण्ड में भी दिया गया है।
Women clothes लोक संस्कृति की धनी इस घाटी में वर्षभर किसी न किसी तरह के लोक मेले आयोजित होते है, जिसमें प्रमुखतः जागर गायन व ढोल बादन के द्वारा देवरा मेले, मनो मेले, चौपता मेला, नाग सिद्ववा, जीतू बगडवाल व पांडव नृत्य, नंदा जात मेला व नो दिवसीय शिव गौरा विवाह मेले आयोजित होते हैं। 

जैविक उत्पाद के लिए भी उर्गम घाटी काफी मशहूर है, जिसमें जैविक दालें राजमा, चौलाई, सोयावीन, मंडुवा, शहद के साथ-साथ कई तरह की औषधीय जड़ी -बूटियाँ भी उत्पादन होती है। यहाँ पहुँचकर पहाड़ी शुद्ध लजीज खाने का आनन्द लिया जा सकता है। अप्रैल मई के बाद यहाँ का मौसम सुहावना हो जाता है , वही अक्टूबर के बाद ठंड बढ़ने के साथ-साथ दिसम्बर जनवरी में बर्फबारी भी शुरू हो जाती है। 

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