
बंशीनारायन मंदिर
वंशीनारायन मंदिर चमोली जिले के उर्गम घाटी से लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित है। मान्याता है कि इस मंदिर में देवऋषि नारद 364 दिन भगवान नारायण की पूजा अर्चना करते हैं और यहां पर मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार सिर्फ एक दिन के लिए ही है। उर्गम घाटी में स्थित भगवान विष्णु के वंशीनारायन मंदिर जो सिर्फ रक्षा बंधन के मौके पर ही खुलता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 12 किमी तक पैदल चलना होता है। रक्षा बंधन के दिन यहां महिलाओं की बहुत भीड़ रहती हैं क्योंकि, महिलाएं इस दिन भगवान विष्णु को राखी बांधने यहां पहुंचती है ।
उर्गम घाटी तक वाहन से पहुंचने के बाद आगे 12 किलोमीटर का सफर पैदल ट्रेक करना पड़ता है। पांच किलोमीटर दूर तक फैले मखमली घास के मैदानों, बुग्याल को पार कर सामने नजर आता है प्रसिद्ध पहाड़ी शैली कत्यूरी में बना वंशीनारायन मंदिर में भगवान विष्णु जी की चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है। यहां मंदिर के पुजारी राजपूत है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था। लोक कथानुसार एक बार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने।भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई।
नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने माता लक्ष्मी से पूछा के भगवान विष्णु कहां पर है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और द्वारपाल बने हुए हैं। नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय भी बताया । उन्होंने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें। रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से वापस उन्हें मांग लें। इस पर माता लक्ष्मी ने कहां कि मुझे पाताल लोक जानें का रास्ता नहीं पता क्या आप मेरे साथ पाताल लोक चलेंगे। इस पर उन्होंने माता लक्ष्मी के आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह उनके साथ पाताल लोक चले गए।
पति को मुक्त कराने के लिए देवी लक्ष्मी पाताल लोक पहुंची और राजा बलि के राखी बांधकर भगवान को मुक्त कराया। जिसके बाद नारद मुनि की अनुपस्थिति में कलगोठ गांव के पुजारी ने वंशीनारायण की पूजा की तब से ही यह परंपरा चली आ रही है। रक्षाबंधन के दिन कलगोठ गांव के प्रत्येक घर से भगवान नारायण के लिए मक्खन, दूध और सत्तू आता है। इसी से वहां पर प्रसाद तैयार होता है। भगवान वंशीनारायन की फूलवारी में कई दुर्लभ प्रजाति के फूल खिलते हैं। इस मंदिर में
श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी होता है। इसके बाद गांव के लोग भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधते हैं। मंदिर में ठाकुर जाति के पुजारी होते हैं।
चमोली जिले के उर्गम घाटी में स्थित “वंशीनारायन मंदिर की खास बात यह है कि इस मंदिर की प्रतिमा में भगवान नारायण और भगवान शिव दोनों के ही दर्शन होते हैं। वंशी नारायण मंदिर में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां भी मौजूद हैं।
बंशीनारायन कैसे पहुँचे:-
ऋषिकेश से जोशीमठ की दूरी लगभग 255 किमी तक बस, बाइक व अन्य मोटर वाहन के माध्यम से पंहुचा जा सकता है। जोशीमठ पहुँचने से 13 किमी पूर्व हेलंग से उर्गम घाटी तक 14 किमी जीप या छोटे वाहनों से पहुंचा जा सकता है। इस घाटी में पर्यटकों की सुविधा हेतु स्थानीय लोगों के होम स्टे उपलब्ध है।
उर्गम, देवग्राम से लगभग 12 किमी पैदल चलकर वंशिनारायन मंदिर पहुँचा जा सकता है।