आप सभी पाठकों को नमस्कार। एक बार पुनः मेरे व्लाग को पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद अपना प्यार और स्नेह बनाये रखेंगे आप से ऐसी आशा है।
आज आप सभी साथियों को एक बार पुनः उर्गम घाटी के भरकी ग्राम पंचायत के नारायण धाम फ्यूला नारायण धाम में ले चलता हूँ। प्रकृति केे अंचल में बसा यह स्थान बहुत ही सुरम्य, शांत व अनेकों प्रकार की पंछियों की कलरव से गुंजायमान रहता है। नारायण धाम में पहुँचने के लिए उर्गम घाटी के कल्पेश्वर महादेव मंदिर से 5 किमी पैदल रास्ता तय करके पहुँचा जा सकता है। अभी भरकी गाँव तक मोटर मार्ग निर्माणाधीन है।
भरकी गाँव पर करते ही कुछ दूरी पर एक विशाल भींगरखवे जल प्रपात है, जिसकी दूध के रंगों की लहरे काफी ऊँचाई से गिरती है। अधिकांशतया पहाड़ों का जल स्वच्छ और निर्मल होता है। जिसको बिना फ्यूरिफाइड किये बिना पिया जा सकता है। यहाँ से फ्यूलनारायन धाम के लिए चढ़ाई का रास्ता शुरू हो जाता है, परन्तु मार्ग सुगम है। जगह-जगह रास्ते में विनायक स्थापित किये गए है। जंगली पेड - पौधे राह चलते, पसीने से नहाये हुए राहगीर को अपने आँचल में समेटकर थकान को मिटा देती है। फ्यूलनारायन धाम समुद्रतल से लगभग 10,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ पहुँचकर मन को शुकून और शांति का अहसास होता है। फ्यूलनारायन मंदिर के कपाट हर वर्ष श्रावण माह में खुलते हैं और नंदा अष्टमी के पर्व पर कपाट श्रद्धालुओं के लिए बन्द कर दिए जाते हैं। यहाँ वर्ष में केवल ढेड़ से दो माह तक ही भरकी, भैंठा के निवासियों के द्वारा प्रति वर्ष प्रति परिवार के अनुसार पूजा की जाती है। नारायण जी की यहाँ पर चतुर्भुज मूर्ति है। नारायण जी के भोग के लिए सत्तू और बाड़ी का भोग भी लगया जाता है। कपाट खोलने के दिन मंदिर के मुख्य द्वार के सामने बनी धूनी जिसमें नारायण जी का भोग, प्रसाद तैयार किया जाता है मंदिर के कपाट बंद होने तक निरन्तर जलती रहती है। मंदिर में नारायण जी के अलावा नंदा, स्वनूल, वनदेवीयों, पितृ देवताओं की पूजा भी पुजारी द्वारा की जाती है। भगवान नारायण के श्रृंगार के लिए नारायण जी की पुष्प बाटिका से फूल लाकर माला तैयार करने का अधिकार यहां पर जो महिला पुजारी होती है सिर्फ उनको ही है। जिनको यहाँ की भाषा में फूल्याण कहा जाता है। जो कि 10 वर्ष से कम की बालिका या 55 वर्ष की अधिक उम्र की महिला होती है।